Deschooling : डी स्कूलिंग थ्योरी,बिना स्कूल के शिक्षा प्राप्त करने की अवधारणा क्या है? ‘डीस्कूलिंग अर्थात् बिना स्कूल शिक्षा’ के लाभ और हानियाँ,क्यों स्कूली शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है? 

Deschooling : डी स्कूलिंग थ्योरी,बिना स्कूल के शिक्षा प्राप्त करने की अवधारणा क्या है? ‘डीस्कूलिंग अर्थात् बिना स्कूल शिक्षा’ के लाभ और हानियाँ,क्यों स्कूली शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है? 

 

 

Deschooling डी स्कूलिंग थ्योरी अर्थात बिना स्कूल शिक्षा

Ivan Illich ने अपनी पुस्तक “Deschooling Society” में जिक्र किया था

इस संकल्पना का इस संकल्पना के अनुसार पाठशाला बच्चे के नैसर्गिक विकास को सम्भव बनाने में सफल नहीं है। बच्चे वही सिखते हैं जिसके लिए वे पहले से तैयार है।

पाठशाला में यांत्रिक तरीके से दी जाने वाली शिक्षा से बच्चे की समझ का विकास प्राकृतिक रूप से नहीं हो सकता। अतः उसे ऐसे प्राकृतिक वातावरण की आवश्यकता है जो उसे उसके नियमों, योग्ताओं के अनुरूप सीखने के अवसर दे। स्कूल सिर्फ कौशलों का प्रशिक्षण देता है। जीवन उससे कहीं अधिक है।

 

प्रकृति के पास अर्थात् प्रकृतिवाद के समर्थक 

 

स्वभाविक अधिगम प्राकृतिक रूप से प्रकृति में ही सम्भव है। इसलिए स्कूल न भेज कर बच्चे को समाज में स्वयं रुचिनुसार सीखने देना चाहिए। इसे हम घर पर शिक्षा भी कह सकते हैं। इस अवधारणा के अनुसार स्कूल ही एक ऐसी जगह नहीं जहाँ सीखना हो सकता है। पर्यावरण प्रचुर मात्र में अवसर उपलब्ध करता है सीख जाने के न की सिखाने के। इसलिए स्वत सीखने को प्रोत्साहित करने और स्कूल का विकल्प प्रदान करने के लिए Deschooling की संकल्पना ने जन्म लिया।

 

इस विचार ने शिक्षाविदों को प्रभावित तो किया पर एकमतता प्राप्त न की जा सकी। इसका व्यापक प्रभाव देखने को नहीं मिला। कुछ प्रयास अवश्य हुए इसे धरातल पर लाने के लेकिन शिक्षा जगत ने इस अभी तक पूरी तरह से नहीं स्वीकार है।

 

Deschooling डी स्कूलिंग थ्योरी अर्थात बिना स्कूल शिक्षा के लाभ और हानियाँ

 

यह अवधारणा जहाँ कुछ लाभ देती है वहीँ कुछ नुक्सान भी। इस सचाई को भी नहीं भुलाना चाहिए कि कोई भी शैक्षिक अवधारणा सर्वगुणसंपन्न न हो सकी है। अर्थात कुछ न कुछ कमी रहनी तय है। स्कूल उत्कृष्ट रास्ता नहीं है यह बीच का रास्ता है। इस रस्ते पर हम यहाँ तक आ गए हैं। आगे इसमें समयानुकूल परिवर्तन देखने को मिलेंगे।

हो सकता है deschooling का पुट भी प्रभावी हो जाये। जीवन बहुत अधिक व्यवस्थित नहीं होता यह गतिशील है। इस गतिशीलता में बच्चे को सीखने के अवसर देने में कितनी स्थिरता हो पायेगी कह नहीं सकते। स्कूल की अपनी सीमाएं हैं। चलन तो अब ए है की 90% से कम तो चाहिए ही नहीं।

 

क्यों स्कूली शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है? 

 

शिक्षा की गुणवत्ता किसी भी इंसान से छिपी नहीं है। शिक्षा की महत्वता की सुगंध एक सुसंस्कृत समाज निर्मित करती है। सभ्य समाज एक शिक्षित वर्ग से बनता है। माता -पिता की पहली ज़िम्मेदारी है कि वह बच्चो को अच्छी शिक्षा प्रदान कर सकें। बच्चे शिक्षित होंगे तो उसके साथ परिवार और समाज शिक्षित होगा। बच्चो को प्रथम शिक्षा उसके माता -पिता से प्राप्त होती है। उसके पश्चात स्कूल यानी विद्यालय में कदम रखते ही बच्चे शिक्षा के पहले पड़ाव से रूबरू होते है। कहा जाता है कि

 

गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।

बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।

 

अर्थात: अगर आपके समक्ष गुरु और भगवान दोनों समीप खड़े है तो आप किसको प्रणाम करेंगे ?ऐसी परिस्स्थिति में अपने गुरु को सर्वप्रथम प्रणाम करेंगे क्यों कि गुरु ने ही हमे ईश्वर की महत्वता के बारें में सिखाया है। अर्थात अगर शिक्षक नहीं होंगे तो हम ईश्वर की पहचान करने में असमर्थ रहेंगे।

 

क्या स्कूल यानी विद्यालय की शिक्षा बच्चो के लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी होता है?

एक अच्छा नागरिक बनने के लिए स्कूली शिक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है। विद्यालय में शिक्षक अपनी हर संभव कोशिशों के साथ छात्रों को शिक्षा प्रदान करते है। विद्यालय में छात्र को विषय संबंधित ज्ञान के आलावा व्यवहारिक यानी प्रैक्टिकल जीवन संबंधित ज्ञान अवश्य प्राप्त होता है।

छात्र विद्यालय में प्रत्येक दिन नियमित रूप से अनुशासन का पालन करता है। विद्यालय में प्रार्थना सभा से हर दिन की शुरुआत होती है। पढ़ाई के साथ साथ विद्यार्थी खेलकूद और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेते है। हर क्षेत्र संबंधित प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। शैक्षिक ,सांस्कृतिक इत्यादि प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती है ताकि बच्चे अपना सम्पूर्ण विकास कर सकें। जिस क्षेत्र में उनकी रूचि है उसकी पहचान कर सके।

 

स्कूल से शिक्षा प्राप्त करने की वजह से विधार्थियों का व्यक्तिगत और मानसिक विकास होता है। ज़िन्दगी के हर छोटे बड़े पहलुओं और सही निर्णय लेने जैसे गुण उनमे निश्चित तौर पर आ जाते है। शिक्षा प्राप्त करने के साथ छात्र बचपन से शिक्षक और बड़ो का सम्मान करना भली भांति सीखते है।

 

आजकल निजी बड़े अंग्रेजी मीडियम स्कूलों की शिक्षा अत्यधिक महंगी हो गयी है। कुछ निचले माध्यम वर्गीय लोगों के पास इतने पैसे नहीं कि वह इन बड़े सम्पन्न विद्यालय में अपने बच्चे को पढ़ा सके। गरीबी की रेखा में जीने वाले परिवार अपने बच्चो को मुश्किल से हाई स्कूल तक ही शिक्षा का पैसा मुश्किल से जुटा पाते है। ऐसे में विद्यार्थी को अपनी ज़िन्दगी से समझौता कर बारहवीं के पश्चात नौकरी करनी पड़ती है।

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लेकिन अभी सरकारी स्कूलों में मुफ्त शिक्षा की योजना के तहत कई बच्चे शिक्षा प्राप्त कर पा रहे है। सरकारी स्कूलों ने भोजन ,साइकिल, पोशाक निशुल्क प्रदान कर रही है।अमीर श्रेणी के लोगों को अपने बच्चो को महंगे स्कूलों में पढ़ाने में बिलकुल दिक्कत नहीं होती है। लेकिन देश तभी शिक्षित और विकसित होगा जब हर एक बच्चे को स्कूल में प्रवेश मिलने के संग अच्छी शिक्षा प्राप्त होगी। साथियों मित्रों यदि मेरे उत्तर से आप संतुष्ट हो तो कृपया आप वोट अवश्य करें।

डिसक्लेमर:

‘इस लेख “ Deschooling : डी स्कूलिंग थ्योरी,बिना स्कूल के शिक्षा प्राप्त करने की अवधारणा क्या है? ‘डीस्कूलिंग अर्थात् बिना स्कूल शिक्षा’ के लाभ और हानियाँ,क्यों स्कूली शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है? ”  में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न सोशल मीडिया माध्यमों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।’

 

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