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Nature’s Gift for us:क्या आप भी जानकर मौत के मुंह में जा रहे हो,आओ प्रकृति की ओर लौटो, 100 वर्ष जीवन जियो अन्यथा बीमार रहो!

Nature’s Gift for us:क्या आप भी जानकर मौत के मुंह में जा रहे हो,आओ प्रकृति की ओर लौटो, 100 वर्ष जीवन जियो अन्यथा बीमार रहो!

आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनिया में सबसे ज्यादा कीमती चीज की ही कीमत नहीं है प्रकृति में प्राप्त सभी चीज अमूल्य हैं वायु इसके बिना मनुष्य केवल 60 सेकंड जीवित रह सकता है पानी इसके बिना मनुष्य ज्यादा से ज्यादा एक दिन जीवित रह सकता है और भोजन ,प्रकृति से प्राप्त भोजन के बिना मनुष्य एक माह तक जीवित रह सकता है और फिर भी उन चीजों की कोई कीमत मनुष्य को समझ नहीं आ रहा है।

झूठ दिखावे और ब्रांड के पीछे भाग रहा है। तरह-तरह के भोज्य पदार्थों का सेवन कर रहा है भोजन के नाम पर विभिन्न प्रकार के केमिकलों का प्रयोग कर रहा है और टेक्नोलॉजी का अविष्कार करके अपने आप पर इतरा रहा है जबकि प्रकृति से प्राप्त चीजों के अभाव में वह जीवित नहीं रह सकता है।

देखिए मल्टीनेशनल कंपनियों कैसे मानसिक गुलाम बना दिया

आईए हम समझते हैं कि किस प्रकार हमारी प्रकृति से छेड़छाड़ हुआ है प्रकृति से प्रदान हमारे प्राण वायु को किस प्रकार प्रदूषित किया गया।पहले तो तरह-तरह की फैक्ट्री से धुएं के माध्यम से प्रकृति से प्राप्त वायु में विभिन्न प्रकार के केमिकल युक्त धुएं को छोड़कर प्रदूषित किया और फिर उसको पुनः प्यूरिफाई करने के नाम पर एयर प्यूरीफायर बनाकर बेंचना करना प्रारंभ कर दिया।

इससे यह प्रदर्शित हो रहा है कि हम प्रकृति के प्रति कितने संजीदा रहे हैं अगर आप प्रकृति में इस प्रकार के धुएं छोड़ते रहोगे तो यह लिख कर ले लो की आने वाले समय में शुद्ध प्राणवायु के लिए तरस जाओगे सभी को अपनी पीठ पर मास्क और ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर चलना पड़ेगा वह दिन दूर नहीं है।

किसको पता था कि प्रकृति में जगह-जगह मुफ्त में मिलने वाला शुद्ध पानी एक दिन ऐसी स्थिति में पहुंच जाएगा कि पीने लायक भी नहीं रह जाएगा और पीने वाले पानी की कमी हो जाएगी। आजकल विभिन्न मल्टी नेशनल कंपनियों द्वारा पानी को भी शुद्ध पानी के नाम पर बोतल में बंद करके बेचना शुरू कर दिया है।

वॉटर प्यूरीफायर,आरो आदि का व्यवसाय इस कदर फैला हुआ है कि आपको गुणवत्ता से विहीन जल पीने के लिए हर घर को मजबूर होना पड़ा है वॉटर प्यूरीफायर जल के सभी खनिज को निकाल कर बाहर कर देते हैं और केवल पानी के नाम पर खनिज लवण विहीन जल पीने को मजबूर करते हैं।

जबकि बहुत सारे खनिज लवण ऐसे हैं जो हमारे शरीर के लिए अति आवश्यक हैं उनके बिना हमें विभिन्न प्रकार के पेट से संबंधित बीमारियां हड्डी से संबंधित बीमारियां मस्तिष्क से संबंधित बीमारियां पैदा हो जाती हैं और हम समझ नहीं पाते हैं कि किसकी कमी से ऐसा हो रहा है हम बीमारी के आगमन से पहले ही उसके प्रति सचेत हो जाएं तो हमको लगता है कि प्रतिवर्ष हर एक परिवार का लाखों रुपया इलाज का बच सकता है।

अभी हाल ही में नई टेक्नोलॉजी आई है कि वाटर कैप्सूल मिलेगा। आपको कि एक कैप्सूल खाओ और पानी की प्यास बुझाओ इस तरह के बेहूदे आविष्कार हमें मौत के मुंह में धकेल रहे हैं जबकि हमारा सीधा सा उद्देश्य होना चाहिए कि प्रकृति में प्राप्त पानी को हम संरक्षित करेंगे और उसी का उपयोग करेंगे।

इस प्रकार के आविष्कार और टेक्नोलॉजी को हमें लात मारने की आवश्यकता है वर्षा के पानी को एकत्र करके पूरे वर्ष हम उपयोग में ला सकते हैं इस पर सरकार भी ध्यान दे रही है और हमें भी वाटर हार्वेस्टिंग पर ध्यान देना होगा।

भोजन के नाम पर हम तरह-तरह के केमिकल युक्त फास्ट फूड, जंक फूड, और न जाने कैसे-कैसे फूड अपने बच्चों को और स्वयं को भी खिला रहे हैं और इसको बढ़ावा देने वाला कोई और नहीं बल्कि मल्टीनेशनल कंपनियां की है।

आधुनिक रेस्टोरेंट के नाम पर यह मौत बांटने वाली दुकान बन गई जो विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट भोजन के नाम पर केमिकल मिलाकर के आपको भोजन का असली स्वाद बता रहे हैं उनको केवल पैसे से मतलब है आपके स्वास्थ्य से मतलब नहीं है आपके स्वास्थ्य को वह किस स्तर तक गिर रहे हैं यह उनका भी अंदाजा नहीं है वह आप तो स्वाद के नाम पर पूरी तरह से उनके मुरीद हो गए।

कोल्डड्रिंक,चाऊमीन, पिज़्ज़ा, बर्गर, ब्रेड, पाव और न जाने कितनी चीज हैं जिन्हें हम अनावश्यक रूप से खा रहे हैं। जबकि हम घर के बने शुद्ध चीजों को खाकर उससे बेहतर स्वाद का अनुभव कर सकते हैं और विभिन्न प्रकार के व्यंजन हमारे प्राचीन काल से ही प्रयोग किया जा रहे हैं बस हमें इस और ध्यान देने की जरूरत है।

आपको बता दें कि कोविद-19 के बाद से जो परिवर्तन पर लक्षित हुए हैं उसको देखकर लगता है कि हमें पुनः उन्हीं देशी व्यवस्थाओं के अनुरूप जीवन यापन करने का प्रयत्न करना चाहिए क्योंकि कहीं ना कहीं हमारे पूर्वज हमसे आपसे ज्यादा अनुभवी और गुणवान रहे हैं भले ही उसे समय टेक्नोलॉजी का अभाव था लेकिन उनके सामान दिनचर्या में भी वैज्ञानिकता छुपी हुई थी।

हमारे बुजुर्ग हम से वैज्ञानिक रूप से बहुत आगे थे। हमको थक हार कर पुनः उनकी ही राह पर वापस आना पड़ रहा है। हम लोग सामान्य और देसी जीवन जीने के लिए मजबूर हो रहे हैं,ऑर्गेनिक के नाम पर आज देसी चीजों का चलन बढ़ रहा है। बढ़े भी क्यों ना क्योंकि तरह-तरह की बीमारियों ने हमें पूरी तरह से जकड़ लिया है, इसे अगर बचाना है तो देसी व्यवस्था में आना ही होगा।

आईए देखते हैं कुछ सामान्य जीवन की अभिनव प्रयोग

  1. मिट्टी के बर्तनों से स्टील और प्लास्टिक के बर्तनों तक और फिर कैंसर के खौफ से दोबारा मिट्टी के बर्तनों तक आ जाना।
  2. अंगूठाछाप से दस्तखतों (Signatures) पर और फिर अंगूठाछाप (Thumb Scanning) पर आ जाना।
  3. फटे हुए सादा कपड़ों से साफ सुथरे और प्रेस किए कपड़ों पर और फिर फैशन के नाम पर अपनी पैंटें फाड़ लेना।
  4. सूती से टैरीलीन, टैरीकॉट और फिर वापस सूती पर आ जाना ।
  5. जयादा मशक़्क़त वाली ज़िंदगी से घबरा कर पढ़ना लिखना और फिर IIM MBA करके आर्गेनिक खेती पर पसीने बहाना।
  6. क़ुदरती से प्रोसेसफ़ूड (Canned Food & packed juices) पर और फिर बीमारियों से बचने के लिए दोबारा क़ुदरती खानों पर आ जाना।
  7. पुरानी और सादा चीज़ें इस्तेमाल ना करके ब्रांडेड (Branded) पर और फिर आखिरकार जी भर जाने पर पुरानी (Antiques) पर उतरना
  8. बच्चों को इंफेक्शन से डराकर मिट्टी में खेलने से रोकना और फिर घर में बंद करके फिसड्डी बनाना और होश आने पर दोबारा Immunity बढ़ाने के नाम पर मिट्टी से खिलाना…
  9. गाँव, जंगल, से डिस्को पब और चकाचौंध की और भागती हुई दुनियाँ की और से फिर मन की शाँति एवं स्वास्थ के लिये शहर से जँगल गाँव की ओर आना। इससे ये निष्कर्ष निकलता है कि टेक्नॉलॉजी ने जो दिया उससे बेहतर तो प्रकृति ने पहले से मुफ्त में दे रखा था।
  10. बस आवश्यकता है तो हमें उन सारी चीजों को समझने का विचार करने का और फिर प्रकृति से प्रदत्त चीजों के संरक्षण का लिए हम सब लोग एक बार पुणे मिलकर प्रकृति से प्राप्त चीजों के संरक्षण के लिए एकजुट हो जाएं और पुणे प्रकृति की ओर लौटो वाली व्यवस्था पर जोर दें।

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