Ayodhya Ram mandir: अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण नागर शैली में!,आईए जानते हैं मंदिर निर्माण की प्रसिद्ध नागर शैली(nagar shaili) के बारे में।

Ayodhya Ram mandir: अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण नागर शैली में!,आईए जानते हैं मंदिर निर्माण की प्रसिद्ध नागर शैली(nagar shaili) के बारे में।

अभी वर्तमान में अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण भी इसी उत्तर भारतीय मंदिर निर्माण नागर शैली(Nagar Shaili) के अनुरूप हो रहा है जिसकी विशेषताएं खुद श्री राम जन्मभूमि मंदिर ट्रस्ट द्वारा बताया गया है।
आपको बता दें कि वर्तमान मैं अयोध्या में निर्मित हो रहे श्री राम मंदिर में 392 स्तंभ,44 दरवाजा,5 मंडप और राम मंदिर की 161ऊंचाई होगी।

अयोध्या में निर्माणाधीन श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की विशेषताएं-

  1. मंदिर परम्परागत नागर शैली में बनाया जा रहा है।
  2. मंदिर की लंबाई (पूर्व से पश्चिम) 380 फीट, चौड़ाई 250 फीट तथा ऊंचाई 161 फीट रहेगी।
  3. मंदिर तीन मंजिला रहेगा। प्रत्येक मंजिल की ऊंचाई 20 फीट रहेगी। मंदिर में कुल 392 खंभे व 44 द्वार होंगे।
  4. मुख्य गर्भगृह में प्रभु श्रीराम का बालरूप (श्रीरामलला सरकार का विग्रह), तथा प्रथम तल पर श्रीराम दरबार होगा।
  5. मंदिर में 5 मंडप होंगे: नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना मंडप व कीर्तन मंडप
  6. खंभों व दीवारों में देवी देवता तथा देवांगनाओं की मूर्तियां उकेरी जा रही हैं।
  7. मंदिर में प्रवेश पूर्व दिशा से, 32 सीढ़ियां चढ़कर सिंहद्वार से होगा।
  8. दिव्यांगजन एवं वृद्धों के लिए मंदिर में रैम्प व लिफ्ट की व्यवस्था रहेगी।
  9. मंदिर के चारों ओर चारों ओर आयताकार परकोटा रहेगा। चारों दिशाओं में इसकी कुल लंबाई 732 मीटर तथा चौड़ाई 14 फीट होगी।
  10. परकोटा के चारों कोनों पर सूर्यदेव, मां भगवती, गणपति व भगवान शिव को समर्पित चार मंदिरों का निर्माण होगा। उत्तरी भुजा में मां अन्नपूर्णा, व दक्षिणी भुजा में हनुमान जी का मंदिर रहेगा।
  11. मंदिर के समीप पौराणिक काल का सीताकूप विद्यमान रहेगा।
  12. मंदिर परिसर में प्रस्तावित अन्य मंदिर- महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, निषादराज, माता शबरी व ऋषिपत्नी देवी अहिल्या को समर्पित होंगे।
  13. दक्षिण पश्चिमी भाग में नवरत्न कुबेर टीला पर भगवान शिव के प्राचीन मंदिर का जीर्णो‌द्धार किया गया है एवं तथा वहां जटायु प्रतिमा की स्थापना की गई है।
  14. मंदिर में लोहे का प्रयोग नहीं होगा। धरती के ऊपर बिलकुल भी कंक्रीट नहीं है।
  15. मंदिर के नीचे 14 मीटर मोटी रोलर कॉम्पेक्टेड कंक्रीट (RCC) बिछाई गई है। इसे कृत्रिम चट्टान का रूप दिया गया है।
  16. मंदिर को धरती की नमी से बचाने के लिए 21 फीट ऊंची प्लिंथ ग्रेनाइट से बनाई गई है।
  17. मंदिर परिसर में स्वतंत्र रूप से सीवर ट्रीटमेंट प्लांट, वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट, अग्निशमन के लिए जल व्यवस्था तथा स्वतंत्र पॉवर स्टेशन का निर्माण किया गया है, ताकि बाहरी संसाधनों पर न्यूनतम निर्भरता रहे।
  18. 25 हजार क्षमता वाले एक दर्शनार्थी सुविधा केंद्र (Pilgrims Facility Centre) का निर्माण किया जा रहा है, जहां दर्शनार्थियों का सामान रखने के लिए लॉकर व चिकित्सा की सुविधा रहेगी।
  19. मंदिर परिसर में स्नानागार, शौचालय, वॉश बेसिन, ओपन टैप्स आदि की सुविधा भी रहेगी।
  20. मंदिर का निर्माण पूर्णतया भारतीय परम्परानुसार व स्वदेशी तकनीक से किया जा रहा है। पर्यावरण-जल संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। कुल 70 एकड़ क्षेत्र में 70% क्षेत्र सदा हरित रहेगा !!

द्वारा-श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट !!

आईए जानते हैं मंदिर निर्माण हेतु मध्यभारत में प्रसिद्ध नागर शैली

‘नागर’ शब्द नगर से बना है। नागर शैली के मंदिर आधार से शिखर तक चतुष्कोणीय होते हैं। सर्वप्रथम नगर में निर्माण होने के कारण इन्हे नागर की संज्ञा प्रदान की गई।
नागर शैली उत्तर भारतीय हिन्दू स्थापत्य कला की तीन में से एक शैली है-इनमें 1.नागर,2.बेसर और 3.द्रविड़ शैली। इस शैली का प्रसार हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत माला तक देखा जा सकता है।

शिल्प शास्त्र के अनुसार नागर मंदिरों के आठ प्रमुख अंग है , इस तरह के मंदिर को ऊंचाई में आठ भागों में बांटा जाता हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं-

(१) मूल आधार – जिस पर सम्पूर्ण भवन खड़ा किया जाता है।
(२) मसूरक – नींव और दीवारों के बीच का भाग
(३) जंघा – दीवारें (विशेषकर गर्भगृह की दीवारें)
(४) कपोत – कार्निस
(५) शिखर – मंदिर का शीर्ष भाग अथवा गर्भगृह का उपरी भाग
(६) ग्रीवा – शिखर का ऊपरी भाग
(७) वर्तुलाकार आमलक – शिखर के शीर्ष पर कलश के नीचे का भाग
(८) कलश – शिखर का शीर्षभाग

नागर शैली में बने मंदिरों को ओडिशा में ‘कलिंग’, गुजरात में ‘लाट’ और हिमालयी क्षेत्र में ‘पर्वतीय’ कहा जाता है।

वास्तुशास्त्र के अनुसार नागर शैली के मंदिरों की पहचान आधार से लेकर सर्वोच्च अंश तक इसका चतुष्कोण होना है। विकसित नागर मंदिर में गर्भगृह, उसके समक्ष क्रमशः अन्तराल, मण्डप तथा अर्द्धमण्डप प्राप्त होते हैं। एक ही अक्ष पर एक दूसरे से संलग्न इन भागों का निर्माण किया जाता है।
नागर शैली की एक आम बात यह थी कि सम्पूर्ण मंदिर एक विशाल चबूतरे (वेदी) पर बनाया जाता है और उस तक पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ होती हैं।

सामान्य: उत्तर भारतीय मंदिर शैली में मंदिर एक वर्गाकार गर्भ-ग्रह, स्तंभों वाला मंडल तथा गर्भ-गृह के ऊपर एकरेखीय शिखर से संयोजित होता है। मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर स्थापित होता है जिसे “जगती” कहते हैं तथा जिस पर जाने के लिए कभी-कभी तीनों ओर से तथा कभी-कभी एक ओर से सीढ़ियां बनी होती है।

नागर शैली के मंदिर मुख्यतः मध्य भारत में पाए जाते है जैसे –

1.कोणार्क का सूर्य मंदिर – कोणार्क (ओड़िसा )

2.खजुराहो के मंदिर – मध्य प्रदेश

3.कंदरिया महादेव मंदिर (खजुराहो)

4.लिंगराज मंदिर – भुवनेश्वर (ओड़िसा )

5.जगन्नाथ मंदिर – पुरी (ओड़िसा )

6.मुक्तेश्वर मंदिर – (ओड़िसा )

7.दिलवाडा के मंदिर – आबू पर्वत (राजस्थान )

8.सोमनाथ मंदिर – सोमनाथ (गुजरात)।

नागर शैली में प्रयुक्त उपशैलियाँ निम्नवत है :-

1.उड़िया उपशैली – ओड़िशा

2.अंतर्वेदी उपशैली – उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली

3.खजुराहो उपशैली – मध्यप्रदेश

4.चालुक्य / सोलंकी उपशैली – गुजरात एवं दक्षिण राजस्थान

5.कश्मीरी उपशैली – कश्मीर।

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