Pt Atal Bihari Vajpayee: पं. अटल बिहारी वाजपेई की जयंती आज, आईए जानते हैं राजनीति के अजातशत्रु, अटल जी के छात्र जीवन से लेकर प्रधानमंत्री बनने तक की कहानी!

Pt Atal Bihari Vajpayee: पं. अटल बिहारी वाजपेई की जयंती आज, आईए जानते हैं राजनीति के अजातशत्रु, अटल जी के छात्र जीवन से लेकर प्रधानमंत्री बनने तक की कहानी!

उत्तर प्रदेश में आगरा जनपद के प्राचीन स्थान बटेश्वर के मूल निवासी पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी मध्य प्रदेश की ग्वालियर रियासत में अध्यापक थे। शिन्दे की छावनी में 25 दिसम्बर 1924 को ब्रह्ममुहूर्त में उनकी सहधर्मिणी कृष्णा वाजपेयी से अटल जी का जन्म हुआ था। पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर में अध्यापन कार्य तो करते ही थे।

छात्र जीवन और राष्ट्रवादी राजनीति की शुरूआत

अटल जी की बी॰ए॰ की शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया काॅलेज (वर्तमान में लक्ष्मीबाई कालेज) में हुई। छात्र जीवन से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने। कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति शास्त्र में एम॰ए॰ की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की।
श्री अटल बिहारी वाजपेयी Atal Bihari Vajpayee जी अपने छात्र जीवन के दौरान पहली बार राष्ट्रवादी राजनीति में तब आये जब उन्होंने वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन जिसने ब्रिटिश उपनिवेशवाद का अंत किया, में भाग लिया। वह राजनीति विज्ञान और विधि के छात्र थे और कॉलेज के दिनों में ही उनकी रुचि विदेशी मामलों के प्रति बढ़ी।
उन्होंने अपने पिताजी के साथ-साथ कानपुर में ही एल॰एल॰बी॰ की पढ़ाई भी प्रारम्भ की लेकिन उसे बीच में ही विराम देकर पूरी निष्ठा से संघ के कार्य में जुट गये। डॉ॰ श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पण्डित दीनदयाल उपाध्याय के निर्देशन में राजनीति का पाठ तो पढ़ा ।

राजनैतिक जीवन

श्री वाजपेयी 1951 में जनसंघ के संस्थायपक सदस्य और फिर 1968-1973 में भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष रहे। सन् 1952 में उन्होंने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, परन्तु सफलता नहीं मिली।लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और सन् 1957 में बलरामपुर (जिला गोण्डा, उत्तर प्रदेश) से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर लोकसभा में पहुँचे।


1955-1977 तक जनसंघ संसदीय पार्टी के नेता रहे।मोरारजी देसाई की सरकार में सन् 1977 से 1979 तक विदेश मन्त्री रहे और विदेशों में भारत की छवि बनायी। वह 1977 से 1980 तक जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य के रूप में कार्य किया।
1980 में जनता पार्टी से असन्तुष्ट होकर इन्होंने जनता पार्टी छोड़ दी और भारतीय जनता पार्टी की स्थापना में मदद की और 1980 से 1986 तक भाजपा के अध्यक्ष रहे।
साथ ही 1980-1984, 1986, 1993-1996 में वे भाजपा संसदीय दल के नेता रहे। ग्यारहवीं लोक सभा के दौरान वह नेता विपक्ष के पद पर रहे। इससे पहले मोरार जी देसाई की सरकार में उन्होंने 24 मार्च 1977 से 28 जुलाई 1979 तक विदेश मंत्री का पदभार भी संभाला।

अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर प्रारम्भ करने वाले वाजपेयी राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन (राजग) सरकार के पहले प्रधानमन्त्री थे, जिन्होंने गैर काँग्रेसी प्रधानमन्त्री पद के 5 वर्ष बिना किसी समस्या के पूरे किए।
वह चार दशकों से भारतीय संसद के सदस्य थे, लोकसभा, निचले सदन, दस बार, और दो बार राज्य सभा, ऊपरी सदन में चुने गए थे।

श्री अटल बिहारी वाजपेयी Atal Bihari Vajpayee 16 से 31 मार्च, 1996 तक और फिर 19 मार्च, 1998 से 13 मई, 2004 तक देश के प्रधानमंत्री रहे।अटल सरकार ने 11 और 13 मई 1998 को पोखरण में पाँच भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट करके भारत को परमाणु शक्ति सम्पन्न देश घोषित कर दिया।पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद वह पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो लगातार दो बार प्रधानमंत्री बने।

वाजपेयी सरकार के अन्य प्रमुख कार्य

एक सौ वर्ष से भी ज्यादा पुराने कावेरी जल विवाद को सुलझाया।

राष्ट्रीय सुरक्षा समिति, आर्थिक सलाह समिति, व्यापार एवं उद्योग समिति भी गठित कीं।

ग्रामीण रोजगार सृजन एवं विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों के लिये बीमा योजना शुरू की।

राष्ट्रीय राजमार्गों एवं हवाई अड्डों का विकास; नई टेलीकॉम नीति तथा कोकण रेलवे की शुरुआत करके बुनियादी संरचनात्मक ढाँचे को मजबूत करने वाले कदम उठाये।

संरचनात्मक ढाँचे के लिये कार्यदल, सॉफ्टवेयर विकास के लिये सूचना एवं प्रौद्योगिकी कार्यदल, विद्युतीकरण में गति लाने के लिये केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग आदि का गठन किया।

आवश्यक उपभोक्ता सामग्रियों के मूल्योंं को नियन्त्रित करने के लिये मुख्यमन्त्रियों का सम्मेलन बुलाया।

उड़ीसा के सर्वाधिक निर्धन क्षेत्र के लिये सात सूत्रीय निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम शुरू किया।

आवास निर्माण को प्रोत्साहन देने के लिए अर्बन सीलिंग एक्ट समाप्त किया।

स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना- भारत भर के चारों कोनों को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना (गोल्डन क्वाड्रिलेट्रल प्रोजैक्ट या जी॰क्यू॰ प्रोजैक्ट) की शुरुआत की गई। इसके अन्तर्गत दिल्ली, कलकत्ता, चेन्नई व मुम्बई को राजमार्गों से जोड़ा गया।

अटल जी का कवि धर्म और दर्शन

अटल बिहारी वाजपेयी Atal Bihari Vajpayee राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक कवि भी थे। मेरी इक्यावन कविताएँ अटल जी का प्रसिद्ध काव्यसंग्रह है।लोकार्पण 13अक्टूबर 1995 को नई दिल्ली में भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री पी० वी० नरसिंहराव ने सुप्रसिद्ध कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की उपस्थिति में किया था।

सर्व प्रथम कविता ताजमहल थी।अटल जी ने किशोर वय में ही एक अद्भुत कविता लिखी थी – ”हिन्दू तन-मन हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय”। उन्होंने राष्ट्रधर्म (मासिक पत्रिका), पाञ्चजन्य (हिंदी साप्ताहिक) के अलावा दैनिक अखबारों जैसे स्वदेश और वीर अर्जुन का संपादन किया।

जिनमें मेरी संसदीय यात्रा-चार भाग में, मेरी इक्यावन कविताएं, संकल्प काल, शक्ति से शांति, फोर डीकेड्स इन पार्लियामेंट 1957-95 (स्पीचेज इन थ्री वॉल्यूम), मृत्यु या हत्याध, अमर बलिदान, कैदी कविराज की कुंडलियां (इमरजेंसी के दौरान जेल में लिखी गई कविताओं का संकलन), न्यू डाइमेंसंस ऑफ इंडियाज फॉरेन पॉलिसी आदि प्रमुख हैं।

पुरस्कार और सम्मान

वाजपेयी जी को राष्ट्र के प्रति उनके सेवाओं के मद्देनजर वर्ष 1992 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। उन्हें लोकमान्य तिलक पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ संसद सदस्य आदि पुरस्कार से नवाजा गया। इससे पहले 1993 में कानपुर विश्वविद्यालय ने मानद डॉक्ट्रेट की उपाधि से नवाजा था।

वर्ष 2014 में उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा की गयी और मार्च 2015 में उन्हें भारत रत्न से प्रदान किया गया। उन्हें 2015 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ की उपाधि से अलंकृत किया गया।

2005 से वे राजनीति से संन्यास ले चुके थे और नई दिल्ली में 6-ए कृष्णा मेनन मार्ग स्थित सरकारी आवास में रहते थे।अटल बिहारी वाजपेयी जी को 2009 में दिल का एक दौरा पड़ा था, जिसके बाद वह बोलने में असक्षम हो गए थे।

उन्हें 11 जून 2018 में किडनी में संक्रमण और कुछ अन्य स्वास्थ्य समस्याओं की वजह से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती कराया गया था, जहाँ 16 अगस्त 2018 को शाम 05:05 बजे उनकी मृत्यु हो गयी।
उनकी दत्‍तक पुत्री नमिता कौल भट्टाचार्या ने उन्हें मुखाग्नि दी। उनका समाधि स्थल राजघाट के पास शान्ति वन में बने स्मृति स्थल में बनाया गया है।

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